परोपकार में ही सच्चा सुख


यूं तो कीड़े मकोड़े शेर भेड़िए हाथी बंदर तोता मैना आदि सब पशु पक्षी खा पीकर अपना पेट भर लेते हैं। ऐसे सब प्राणी अपना अपना स्वार्थ पूरा कर लेते हैं। “यदि मनुष्य भी ऐसा ही स्वार्थी बनकर और अकेला खा पीकर सो जाए, तो उसमें पशु पक्षियों से अधिक विशेषता कुछ नहीं है।”
वैदिक शास्त्रों में यही बताया है, कि “मनुष्य सब प्राणियों में से सबसे अधिक बुद्धिमान है। कर्म करने में स्वतंत्र भी है। तो उसे कुछ धर्म का आचरण भी करना चाहिए। केवल स्वार्थी नहीं बनना चाहिए, बल्कि दूसरों के लिए भी कुछ काम करना चाहिए। कुछ सेवा करनी चाहिए। दान देना चाहिए। परोपकार करना चाहिए। दूसरों का दुख दूर करना चाहिए। यही मानवता है।”
कहने का सार यह हुआ, कि “परोपकार करना, एक दूसरे के लिए जीना, इसी में सुख है।” आपके गुण कर्म स्वभाव सबके साथ तो मिलेंगे नहीं। “क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के विचारों में बुद्धि में संस्कारों में कुछ न कुछ अंतर होता ही है।” “अतः परिवार मित्र संबंधी रिश्तेदार आदि इनमें से ढूंढें कि किसके गुण कर्म स्वभाव आपके साथ मेल खाते हैं। जिनके गुण कर्म स्वभाव आपके साथ मेल खाते हों, उनके लिए जिएं। वे आपके लिए जिएं। एक दूसरे को समय दें, एक दूसरे से प्रेम भाव रखें। एक दूसरे का भला करें। यही मानवता है। इसी में सच्चा सुख है, स्वार्थी होने में नहीं।”

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