परिचय
मनुष्य एक चेतन प्राणी है, और उसकी चेतना का मूल आधार उसकी आत्मा है। यह आत्मा न तो जन्मती है, न ही मरती है — यह अनादि, अविनाशी, और सनातन है। मनुष्य का जीवन तभी सार्थक हो सकता है जब वह आत्मा के स्वरूप, अपने कर्तव्यों और जीवन के परम उद्देश्य को समझे।

🔹 आत्मा का स्वरूप
आत्मा एक चेतन तत्व है जो शरीर में विद्यमान होकर उसे जीवन देता है। इसका वर्णन भगवद्गीता में भी आता है:
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः॥”
यह आत्मा:
अमर और शाश्वत है
अग्नि से जलती नहीं, जल से गीली नहीं होती
वायु इसे सुखा नहीं सकती और शस्त्र इसे काट नहीं सकते

🔹 जन्म और मृत्यु का चक्र
आत्मा जन्म-मरण के चक्र में बंधी होती है। मृत्यु के बाद आत्मा पुनः किसी अन्य शरीर में जन्म लेती है। यह चक्र तब तक चलता है जब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं कर लेती।
सुख का कारण: शुभ कर्म
दुःख का कारण: अज्ञानयुक्त अशुभ कर्म
🔹 मनुष्य जीवन का उद्देश्य
मनुष्य का जन्म केवल भोग-विलास के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान प्राप्ति, कर्तव्य पालन, और मोक्ष के लिए हुआ है। इसके लिए आवश्यक है:
आत्मा, ईश्वर, प्रकृति और सृष्टि का ज्ञान
वेदों का अध्ययन
सत्य को ग्रहण करना और असत्य का त्याग करना
🔹 वेद: ज्ञान का आदिस्रोत
वेद हमें सत्य व असत्य, कर्तव्य व अकर्तव्य का विवेक प्रदान करते हैं। आर्यसमाज के नियमों का पालन कर और वेदों का अध्ययन करके मनुष्य:
अपने जीवन को कर्तव्यमय बना सकता है
दुःखों से मुक्त हो सकता है
विद्या एवं वैराग्य से मोक्ष को प्राप्त कर सकता है
🔹 महापुरुषों का आदर्श जीवन
इतिहास में ऐसे कई ऋषि-मुनि और योगी हुए हैं जिन्होंने:
वेदाध्ययन में अपना संपूर्ण जीवन लगाया
अज्ञान व अकर्तव्य से दूर रहकर संतोषपूर्ण जीवन जिया
समाधि द्वारा ईश्वरानंद का अनुभव किया
उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि ज्ञान और योग से ही आत्मा का कल्याण संभव है।

🔹 निष्कर्ष
आत्मा का ज्ञान और वेदों का पथ मनुष्य को सच्चे सुख और मोक्ष की ओर ले जाता है। हमें चाहिए कि हम:
वेदों का अध्ययन करें
आर्यसमाज जैसे सच्चे मार्गदर्शकों की शिक्षा को अपनाएं
और सत्य मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बनाएं