परिवार के साथ जुड़े रहें

एक शाम एक पिता अपने आठ साल के बच्चे को पतंग उड़ाना सीखा रहा था ।




धीरे धीरे पतंग काफी ऊँची उड़ने लगी बच्चा ये सब बहुत गौर से देख रहा था काफी मजा आ रहा था उसे ।

कुछ देर ऐसे ही देखते हुए बच्चा अचानक जोर से बोला – पिताजी ये पतंग ज्यादा ऊपर नहीं जा पा रही है आप ये धागे की डोर तोड़ दो तो ये पतंग बहुत ऊंंची चली जाएगी ।

पिता ने हँसते हुए पतंग की डोर तोड़ दी , पर ये क्या ? अगले ही पल पतंग ऊपर जाने की बजाये नीचे जमीन पर आ गिरी ।

बच्चा बहुत हैरानी से देख रहा था , पिता ने समझाया कि बेटा यही जीवन का सार है जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं हमें ऐसा लगता है कि कुछ चीज़ें हमें और ऊपर जाने से रोक रहीं हैं जैसे हमारा घर ,परिवार, दोस्त , रिश्तेदार ,माता -पिता , और हम पतंग की डोर तरह इन सब चीज़ों से आजाद होना चाहते हैं लेकिन कहीं ना कहीं यही सब चीज़ें हमारी प्रगति की जिम्मेदार होती हैं ।

सौभाग्यशाली होते वो जिनका परिवार साथ रहता है।

**परिवार के साथ जुड़े रहें

संसार में कोई भी दो व्यक्ति ऐसे नहीं मिलते जिनके विचार पूरी तरह एक समान हों। हर व्यक्ति के पूर्व जन्मों के संस्कार, वर्तमान जीवन की परिस्थितियाँ, पढ़ाई-लिखाई, खान-पान, मित्र मंडली और अन्य कई कारणों से उनके विचारों में भिन्नता आना स्वाभाविक है। यह भिन्नता परिवार के सदस्यों के बीच भी देखने को मिलती है। लेकिन जब यह विचार भिन्नता स्वार्थ और अज्ञानता (अविद्या) के साथ मिल जाए, तो परिवार में टकराव और झगड़े बढ़ने लगते हैं।

स्वार्थ और अविद्या: झगड़ों का मूल कारण

स्वार्थ वह भावना है जो व्यक्ति को केवल अपने लाभ के बारे में सोचने को मजबूर करती है। जब परिवार के सदस्य अपने-अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देने लगते हैं, तो आपसी समझ कम होने लगती है। इसके साथ ही अविद्या, यानी सही ज्ञान का अभाव, इस टकराव को और बढ़ा देता है। अज्ञानता के कारण लोग एक-दूसरे की भावनाओं और दृष्टिकोण को समझने में असफल रहते हैं, जिससे छोटी-छोटी बातें भी बड़े झगड़ों का रूप ले लेती हैं।

झगड़ों से बचने का उपाय

परिवार में सुख और शांति बनाए रखने के लिए हमें अपने स्वार्थ को नियंत्रित करना होगा। साथ ही, अविद्या को दूर करने के लिए ज्ञान और समझ को बढ़ाना होगा। हमें निष्पक्ष भाव से सभी के सुख और उन्नति को प्राथमिकता देनी चाहिए। जब हम दूसरों की प्रगति में अपनी प्रगति देखते हैं, तो परिवार में एकता और प्रेम बढ़ता है।

अगर कभी छोटी-मोटी गरमागरमी या झगड़ा हो भी जाए, तो हमें अपने मन की बात खुलकर कहनी चाहिए और फिर एकमत हो जाना चाहिए। अपनी गलतियों को स्वीकार करके उन्हें सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। यह न केवल परिवार को जोड़े रखता है, बल्कि व्यक्तिगत विकास में भी मदद करता है।

परिवार से जुड़े रहने का महत्व

हमारे गुरुजी, पूज्य स्वामी जी महाराज, कहा करते थे, “जो व्यक्ति छोटे-छोटे स्वार्थों के कारण परिवार, संस्था या संगठन से अलग हो जाता है, उसके बड़े-बड़े स्वार्थ भी समय के साथ नष्ट हो जाते हैं।” जैसे वृक्ष के पत्ते जब तक वृक्ष से जुड़े रहते हैं, उनका मूल्य होता है, लेकिन जैसे ही वे टूटकर जमीन पर गिरते हैं, उनकी कीमत खत्म हो जाती है। ठीक वैसे ही, परिवार से अलग होने पर व्यक्ति का मूल्य और महत्व भी कम हो जाता है।

परिवार के साथ रहने में भले ही कुछ कष्ट हो, लेकिन इसके लाभ अनगिनत हैं। परिवार न केवल भावनात्मक समर्थन देता है, बल्कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति भी प्रदान करता है। यदि हम परिवार से अलग हो जाते हैं, तो भविष्य में हमें कई दुखों का सामना करना पड़ सकता है। तब पछतावे के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता।

बुद्धिमत्ता का रास्ता

बुद्धिमत्ता इसी में है कि हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों को त्यागकर परिवार के साथ मिलकर रहें। परिवार एक ऐसी नींव है जो हमें स्थिरता, प्रेम और सुरक्षा प्रदान करती है। इसलिए, हर संभव प्रयास करें कि परिवार के साथ आपका रिश्ता मजबूत रहे।

निष्कर्ष

जीवन में सुख और शांति के लिए परिवार के साथ जुड़े रहना जरूरी है। स्वार्थ और अज्ञानता को छोड़कर, प्रेम और समझ के साथ परिवार को एकजुट रखें। जैसा कि हमारे गुरुजी कहते थे, “छोटे स्वार्थों को छोड़कर बड़े सुख को अपनाएं।” परिवार के साथ मिलकर जिएं, और जीवन को सार्थक बनाएं।

वसुधैव कुटुम्बकम्

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